विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग को भला कौन नही जानता. उनका जन्म 8 जनवरी 1942 ब्रिटेन में हुआ. उनकी जिंदगी कुछ इस तरह की थी जो आप सबको जरूर हैरान कर देगी. वर्तमान स्थिति में वे न तो चल सकते हैं, न बोल सकते हैं और न ही वे अपने हाथोँ द्वारा कोई काम कर सकते है. उनका शरीर कोई भी काम करने में पूरी तरह से असमर्थ है. वे केवल कम्प्यूटर के माध्यम से संकेत देते रहते हैं कि उन्हें क्या चाहिए या वे क्या कहना चाहते हैं और क्या करना चाहते हैं? शारारिक तौर पर असमर्थ होते हुए भी वे एक महान वैज्ञानिक हैं और लगातार अपने काम किए जा रहे है.
ऐसा नहीं है कि उन्हें पैदाईशी कोई बीमारी थी. जन्म से तो वे पूर्णरूप से स्वस्थ थे. लेकिन 21 वर्ष की आयु में अकस्मात ही उनके जीवन में इस बिमारी का आगमन हुआ. जब वे ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय में स्नातक पाठ्यक्रम के तीसरे वर्ष के विधार्थी थे. उस दौरान उनकी शारीरिक गतिविधियाँ बिमारी के कारण प्रभावित होने लगी थी. वे सीढ़ियों पर चढ़ते वक्त लडखडाने लगते थे. स्केटिंग के दौरान जब वे बर्फ़ पर गिर गए थे तब उन्हें होस्पिटल लाया गया. फिर जैसे-जैसे डॉक्टरों की जाँच आगे बढ़ी, बिमारी की गंभीरता सामने आने लगी. इलाज के दौरान उन्हें पता चला कि वे एक गंभीर बिमारी की चपेट में आ चुके थे. जिसका नाम था – ”एमायोट्रोफिक लैटरल स्कलीरोसिस.”
यह एक ऐसी बिमारी होती है. जिसमें मरीज का दिमाग अपने शरीर पर से पूरी तरह से नियंत्रण खो देता है. संपूर्ण जांच के बाद उस वक्त डॉक्टरों ने कहां था कि स्टीफन हॉकिंग का जीवन अधिकतम दो साल तक का ही ओर है. आज हमारे लिए इससे बढ़कर खुशी और आश्चर्य की बात और क्या होगी कि वे इस बिमारी के बावजूद अब भी जीवित है. स्टीफन हॉकिंग 50 वर्षो से इस बिमारी से लड़ रहे है. लेकिन यह बिमारी अभी भी उन्हें जीवन के प्रति मायूश नही कर पाई. इसका पूरा श्रेय उनकी सकारात्मक सोच व हौसले का है. जिसने उन्हें जिंदगी की सबसे विवश कर देने वाली परिस्थितियों में भी एक सफल तथा विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक के रूप में सदा के लिए अमर कर दिया.
स्टीफन हॉकिंग ने एक साक्षात्कार के दौरान बताया था कि जब उन्हें भी इस बिमारी के बारे में पहली बार पता चला तो वे भी सामान्य लोगों की तरह घबरा गए थे. सोचने लगे थे कुछ समय के बाद उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय हो जाएगी. फिर इस अपाहिज शरीर के लिए इतनी पढ़ाई व पी.एच.डी. की डिग्री का क्या मतलब रह जाएगा? उन्हें लगा कि उनके सभी सपनों पर इस बिमारी का ग्रहण लग चुका है और अब वे अपने इस जीवन में शायद ही कुछ कर पाए. लेकिन, उन्हें इस बात की बेहद खुशी थी कि इस बिमारी में भी उनका मस्तिष्क पूरी तरह से स्वस्थ था और वे अच्छी तरह सोच पा रहे थे. इसलिए अब वे मानसिक रूप से कार्य कर सकते थे और फिर उन्होंने वही किया. जो एक स्वस्थ मस्तिष्क वाले व्यक्ति को करना चाहिए. उन्होंने अपनी सकारात्मक सोच व हौसलापूर्ण नजरिये को अपनाया.
आज वे यह मानते है – ”सच कहूं तो कई बार मैं अपनी बिमारी के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ. जिसके कारण मैं अपना पूरा ध्यान शोधकार्य में लगा सका और दूसरे कार्यो से बच गया. मैं थ्योरिटिकल फ़िज़िक्स में काम कर पाया और इस काम में मेरी यह बिमारी कहीं बाधा नहीं बनी.” वे यह भी कहते है कि दूसरों की नजर में शायद मेरा जीवन सामान्य नहीं है, पर मैं ऐसा बिल्कुल नहीं मानता. जीवन में मैंने जो चाहा, वह किया है. मैं क्षमता, जोश, हिम्मत, उत्साह, विश्वास, लगन और धैर्य में किसी से कम नहीं हूँ और न ही मैं अपने जीवन से हताश और निराश हूँ. पिछले 50 सालों से मैं अपनी जल्दी मृत्यु हो जाने की आशंकाओं में जी रहा हूँ. मुझे मौत से डर नहीं लगता और मुझे मरने की जल्दी भी नहीं है. अभी मेरे पास बहुत कुछ करने के लिए बाकी है.
स्टीफन हॉकिंग के जीवन का सबसे बड़ा आदर्श और मंत्र है – ”आशावान बनें और खुद को व्यस्त रखें.”
इसी मंत्र ने उन्हें आजतक जीवित भी रख रखा हैं. उनका यह भी कहना है – ”मैंने वही किया, जो मैं कर सकता था. जितना मैं चाहता था, उतना मैनें किया. मुझसे भी अधिक साहसी और सक्षम लोग बुरी दशा में जी रहे है. उनसे किसी को सहानुभूति नहीं है और वे शिकायत भी नहीं करते. उन लोगों को मैं यही कहना चाहूँगा कि विकलांग होना आपका दोष नहीं है. लेकिन विकलांगता की तरह जीवन जीना ग़लत है. विकलांग आपका शरीर हो सकता है, अगर आपका दिमाग स्वस्थ है तो आपकी सकारात्मक सोच कभी विकलांग नही हो सकती. इसलिए दूसरों को दोष न दें और न ही किसी से सहानुभूति की अपेक्षा रखे. जीवन कि सच्चाई अगर आपको समझनी है तो आपको सकारात्मक और व्यावहारिक सोच का दृष्टिकोण रखना ही होगा. जरूरत यह है कि आप अपने जीवन की मौजूद स्थितियों में से सबसे बेहतर स्थिति का चुनाव करें. वहाँ मन को एकाग्र करें, जहाँ आप अपना बेस्ट दें सके.”
स्टीफन हॉकिंग एक विश्व प्रसिद्ध ब्रितानी भौतिक विज्ञानी, ब्रह्माण्ड विज्ञानी, लेखक और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में Centre for Theoretical Cosmology के शोध निर्देशक है. उन्होंने ब्लैक होल का कांसेप्ट और हॉकिंग रेडिएशन का विचार भी दुनिया को दिया. उनकी लिखी गयी किताब “A BRIEF HISTORY OF TIME” ने दुनिया भर के विज्ञान जगत में तहलका मचा दिया. आज उनके पास भौतिकी के छोटे बड़े कुल 12 मानद डिग्रियाँ हैं और अमरीका का सबसे उच्च नागरिक सम्मान भी उन्हें दिया गया है. हॉकिंग ने अपनी इच्छा शक्ति पर पूरी तरह से पकड़ बना रखी है. उन्होंने अपनी बिमारी को एक वरदान के रूप में लिया और अपने शोधमार्ग पर आगे बढ़ते चले गए. दुनिया को यह दिखाते चले गये की उनकी इच्छा शक्ति और बुद्धिमत्ता को कम नहीं आंकी जा सकती. इस तरह हॉकिंग अपनी खोजो में आगे बढ़ते गये और दुनिया को बता दिया की अपंगता तन से होती है मन से नहीं. हॉकिंग का IQ 160 है जो किसी जीनियस से भी कहीं ज्यादा है.
स्टीफन हॉकिंग ने खुशी जताते हुए कहां – ”मुझे इस बात की अधिक खुशी है कि मैंने ब्रह्माण्ड को समझने में अपनी भूमिका अदा की, इसके रहस्य लोगों के सामने खोले और इस पर किये गये शोध में अपना योगदान दे पाया. मुझे गर्व होता है जब लोगों की भीड़ मेरे काम को जानना चाहती है”
इच्छामृत्यु पर विचार – ”लगभग सभी मांसपेशियों से मेरा नियंत्रण खो चुका है और अब मैं अपने गाल की मांसपेशी के जरिए, अपने चश्मे पर लगे सेंसर को कम्प्यूटर से जोड़कर ही बातचीत करता हूँ.”
लेकिन आज भी स्टीफन हॉकिंग बस अपनी इच्छा शक्ति के बल पर अपनी जिन्दगी को जिए जा रहे है. 70 वें जन्म दिन पर उन्होनें कहां – ”मै अभी और जीना चाहता हूँ.” हमारी यही दुआ है की वो ऐसे ही जीते रहे और हमें नित नयी खोजों से अवगत कराते रहें.
स्टीफन हॉकिंग ने अपने जीवन के इस उदाहरण से यह बात प्रमाणित कि है – जीवन कि अनेकों समस्याओं में, बुरी से बुरी परिस्थितियों में भी धैर्य, साहस, सकारात्मक, आशावादी सोच, कोशिश व कार्य करने के जज़्बे को अपनाना चाहिए और नकारात्मक सोच का त्याग करना चाहिए. क्योंकि आशावादी और सकारात्मक सोच ही सफल जीवन की आधारशिला है. जिसे अपनाकर इंसान दुनिया में मिसालें कायम करता है और महान बन जाता है.
‘अच्छा देखो, अच्छा सोचो’ जागरूक टीम की ओर से हम इस महान वैज्ञानिक और रियल लाइफ हीरो ‘स्टीफन हॉकिंग’ को नमन करते है. साथ ही ईश्वर से यह प्रार्थना करते है इनके जैसी सकारात्मक सोच, जज्बे व धैर्य का पूरे विश्व में संचार हो.