आइये जानते हैं नोमोफोबिया क्या है। टेक्नोलॉजी ने हमारी लाइफ को बहुत आसान बनाया है लेकिन इसी टेक्नोलॉजी ने हमारी लाइफ को कई मुश्किलों में भी डाला है। ऐसी ही एक मुश्किल है नोमोफोबिया, जो डर का एक रुप है।
ऐसे में आपको भी इस फोबिया के बारे में जरूर जानना चाहिए। तो चलिए, आज बात करते हैं इस डर की।
नोमोफोबिया क्या है?
नोमोफोबिया यानी मोबाइल फोबिया, मोबाइल के खो जाने या ना होने का फोबिया। इसे अक्सर हम सामान्य बात समझते आये हैं लेकिन ये भी फोबिया का एक प्रकार है।
नोमोफोबिया को रिंग एंजाइटी भी कहा जाता है। इसमें ऐसा बार-बार लगता है कि कहीं मोबाइल बज तो नहीं रहा है। अक्सर ये ख्याल आता रहता है कि किसी ने मिस कॉल किया होगा, किसी ने फोन किया होगा, किसी ने जरुरी मैसेज किया होगा और आपको फोन की रिंग सुनाई नहीं दे पा रही है।
इस डर में आपको हमेशा ये लगता रहता है कि आपका फोन कहीं खो ना जाये और इसलिए आप बार-बार अपना फोन चेक करते रहते हैं।
नोमोफोबिया पर हुयी रिसर्च के अनुसार, 77 प्रतिशत लोगों के लिए मोबाइल के बिना थोड़ा वक्त निकालना भी बहुत मुश्किल होता है। इस रिसर्च में 25-34 एज ग्रुप के 68 प्रतिशत लोग थे जो मोबाइल के बिना नहीं रह सके।
75 प्रतिशत से ज्यादा लोग बाथरुम में भी अपना मोबाइल लेकर जाना जरुरी समझते हैं। 46 प्रतिशत लोग अपने फोन में पासवर्ड लगाते हैं ताकि कोई उनका मोबाइल छेड़े नहीं।
ऐसे लोगों की संख्या लगभग 50 प्रतिशत होती है जिनका एसएमएस या एमएमएस अगर कोई पढ़ लेता है तो उन्हें तनाव और निराशा महसूस होने लगती है। ऐसे लोग दिन में 35-40 बार अपना फोन चेक करते हैं।
अगर आपको भी ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं तो तुरंत अपने फोन की फिक्र करना छोड़ दीजिये क्योंकि आपकी ये लत बीमारी का रुप ले सकती है इसलिए जरुरत ना होने पर मोबाइल को अपने से दूर रखिये और अगर फोन से जुड़ा ये डर आपका पीछा ना छोड़े तो मनोचिकित्सक से मिलने में संकोच ना करें।
उम्मीद है जागरूक पर नोमोफोबिया क्या है कि ये जानकारी आपको पसंद आयी होगी और आपके लिए फायदेमंद भी साबित होगी।
Thank you sir for this post….
Aapki post mujhe bhut pasand aayi apne cheezo ko bhut aache se explain kiya hai ise smajhna bhut aasan hai aapki ye post logo ke kaafi kaam aayegi…..