आइये जानते हैं टेस्टिकुलर कैंसर क्या है। हमारे शरीर में होने वाले बदलाव किसी गंभीर बीमारी जैसे कैंसर के संकेत भी हो सकते हैं इसलिए उन्हें नज़रअंदाज़ करना सही नहीं होता है। ऐसे ही एक कैंसर का रूप है टेस्टिकुलर कैंसर, जिसके संकेतों को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया जाता है और नतीजा कैंसर के रूप में सामने आता है।
ऐसे में आपको भी टेस्टिकुलर कैंसर के बारे में जरूर जानना चाहिए ताकि इसके लक्षण, कारण और बचाव के तरीके आप भी जान सकें और अपनी सेहत का सही तरीके से ख़याल रख सकें इसलिए आज आपको बताते हैं टेस्टिकुलर कैंसर के बारे में।
टेस्टिकुलर कैंसर क्या होता है?
टेस्टिस यानी वृषण पुरुषों में पाया जाता है और जब टेस्टिस में कैंसर हो जाता है तो इसे टेस्टिकुलर कैंसर कहते हैं। ये टेस्टिस अंडकोष (टेस्टिकल्स) के अंदर स्थित होता है।
अंडकोष रिप्रोडक्शन के लिए पुरुष सेक्स हार्मोन और शुक्राणुओं का निर्माण करता है। कैंसर का ये रूप भले ही आम नहीं है लेकिन 15 से 35 साल की उम्र के पुरुषों में इस कैंसर के होने की सम्भावना सबसे ज्यादा रहती है।
टेस्टिकुलर कैंसर होने के कारण क्या-क्या हो सकते हैं?
- टेस्टिकुलर कैंसर होने के कारण अभी तक ज्यादा स्पष्ट रुप से ज्ञात नहीं है लेकिन ये स्पष्ट है कि अन्य प्रकार के कैंसर की तरह ही, टेस्टिकुलर कैंसर भी स्वस्थ कोशिकाओं के अनियमित तरीके से बढ़ने और उनमें होने वाले बदलाव के कारण ही शुरु होता है।
- एज फैक्टर इस कैंसर को प्रभावित कर सकता है यानी 15 से 35 वर्ष के युवाओं में इसके होने की सम्भावना ज्यादा होती है।
- फैमिली हिस्ट्री का भी इससे सम्बन्ध होता है यानी परिवार में पहले किसी को टेस्टिकुलर कैंसर हो तो ये कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
- टेस्टिस का जरुरत से ज्यादा विकसित होना भी कैंसर के ख़तरे को बढ़ा सकता है।
टेस्टिकुलर कैंसर के लक्षण क्या-क्या हो सकते हैं?
• अंडकोष (टेस्टिकल्स) में गांठ का अनुभव होना
• अंडकोष की थैली में द्रव जमा होना
• अंडकोष में दर्द महसूस होना
• अंडकोष की थैली में भारीपन अनुभव होना
• पीठ में दर्द होना
टेस्टिकुलर कैंसर के प्रकार क्या-क्या होते हैं?
- जर्म सेल ट्यूमर – जर्म सेल्स अंडकोष यानी टेस्टिकल्स में पायी जाती हैं। ये सेल्स स्पर्म्स का निर्माण करती है। टेस्टिकुलर कैंसर के सबसे ज्यादा मामलों में इसी प्रकार का टेस्टिकुलर कैंसर होता है।
- स्ट्रोमल ट्यूमर – जब ट्यूमर अंडकोष के सहायक ऊतकों या स्ट्रोमा में विकसित होने लगे तो इसे स्ट्रोमल ट्यूमर कहा जाता है। स्ट्रोमा हार्मोन उत्पादन का कार्य करता है। वयस्कों की तुलना में ये ट्यूमर बच्चों में होने का ख़तरा ज्यादा रहता है।
- सेकंडरी टेस्टिकुलर कैंसर – कई बार कैंसर शरीर के किसी अन्य भाग से शुरू होता है और टेस्टिस तक फैल जाता है। ऐसे में इसे सेकण्डरी टेस्टिकुलर कैंसर कहा जाता है।
टेस्टिकुलर कैंसर के कितने स्टेप्स होते हैं?
टेस्टिकुलर कैंसर के 3 स्टेप होते हैं-
- पहला स्टेप – इस स्टेप में पता चलता है कि कैंसर अभी अंडकोष (टेस्टिकल्स) तक ही सीमित है।
- दूसरा स्टेप – ये स्टेप बताता है कि कैंसर पेट में लिम्फ नोड्स में फैल चुका है।
- तीसरा स्टेप – इस स्टेप से पता चलता है कि टेस्टिकुलर कैंसर अब शरीर के दूसरे हिस्सों जैसे हड्डी, दिमाग, फेफड़ें और लिवर तक पहुँच चुका है।
टेस्टिकुलर कैंसर से बचाव के क्या तरीके हो सकते हैं?
टेस्टिकुलर कैंसर से बचाव का ऐसा कोई तरीका नहीं है। केवल समय-समय पर जांचते रहने से ही इस अंग में होने वाले बदलावों को पहचाना जा सकता है इसलिए अगर टेस्टिस में किसी प्रकार का दर्द, गांठ का अनुभव हो या आकार में किसी तरह का बदलाव अनुभव हो तो डॉक्टर से परामर्श लेने में बिलकुल देर नहीं करनी चाहिए।
टेस्टिकुलर कैंसर की जाँच कैसे की जाती है?
टेस्टिकुलर कैंसर के संकेत पाए जाने पर, इसके निदान के लिए कई तरीके अपनाये जा सकते हैं जैसे-
- फिजिकल टेस्ट
- अल्ट्रासाउंड
- सीटी स्कैन
- एक्सरे
- सीरम ट्यूमर मार्कर टेस्ट
- इनगुइनल ओरकिएकटमी
- बायोप्सी
टेस्टिकुलर कैंसर का निदान करने के बाद, उपचार कैसे किया जाता है?
मरीज की शारीरिक स्थिति और कैंसर की प्रकृति के अनुसार उपचार के ये तरीके अपनाये जाते हैं-
- सर्जरी
- रेडिएशन थेरेपी
- कीमोथेरेपी
हालाँकि टेस्टिकुलर कैंसर का उपचार संभव होता है लेकिन फिर भी ये कैंसर शरीर के दूसरों अंगों में भी फैल सकता है। इसके अलावा अगर एक या दो अंडकोष हटा दिए जाएँ तो रिप्रोडक्शन कैपेसिटी भी प्रभावित हो सकती है इसलिए उपचार से पहले डॉक्टर से स्पष्ट परामर्श जरूर किया जाना चाहिए।
अब आपके पास टेस्टिकुलर कैंसर से जुड़ी सभी जरुरी जानकारियां आ गयी हैं इसलिए इसके प्रति सजग और जागरूक बनिए और अपनी सेहत को सुरक्षित बनाए रखिये।
जागरूक टीम को उम्मीद है कि ये जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी।